Loading...
logo-acharya
Comprehensive Consultation Services
Every Sunday: 2pm – 5pm
BOOK AN APPOINTMENT
Devshayani Ekadashi Vrat

देवशयनी एकादशी: आध्यात्मिक महत्व और व्रत विधि

blank

परिचय

हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है, और देवशयनी एकादशी (जिसे हरिशयनी एकादशी भी कहा जाता है) उनमें से एक प्रमुख तिथि है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को यह व्रत मनाया जाता है। इस दिन से भगवान विष्णु चार महीने के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं, जिसे 'चातुर्मास' कहा जाता है। इस अवधि के दौरान, भगवान विष्णु की विशेष पूजा और आराधना की जाती है।

पौराणिक कथा

देवशयनी एकादशी से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है, सत्ययुग में मांधाता नाम के एक राजा थे, जिनके राज्य में तीन साल तक वर्षा नहीं हुई। इसके कारण राज्य में भारी सूखा पड़ गया और प्रजा दुखी हो गई। राजा ने ऋषियों से उपाय पूछा, तब अंगिरा ऋषि ने उन्हें आषाढ़ शुक्ल एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। राजा और उनकी प्रजा ने यह व्रत किया और भगवान विष्णु की कृपा से राज्य में पुनः वर्षा होने लगी। इस प्रकार देवशयनी एकादशी का व्रत करना सुख-समृद्धि और पापों से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है।

व्रत की विधि

देवशयनी एकादशी व्रत को विधिपूर्वक करने के लिए निम्नलिखित विधि अपनाई जाती है:

1.  स्नान और संकल्प:  व्रतधारी को प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व स्नान कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए।

2.  पूजा: भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर के सामने दीपक जलाकर पूजा करें। विष्णु सहस्रनाम, विष्णु चालीसा, और अन्य विष्णु मंत्रों का जाप करें।

3.  फलाहार:  इस दिन केवल फलाहार का सेवन किया जाता है। अन्न, चावल और अनाज का त्याग करना चाहिए।

4.  रात्रि जागरण:  संभव हो तो रात्रि में जागरण करें और भगवान विष्णु की आराधना करें।

5.  दान:  अगले दिन द्वादशी को व्रत का पारण करने से पहले ब्राह्मणों को दान दें और उन्हें भोजन कराएं।

आध्यात्मिक महत्व

देवशयनी एकादशी का आध्यात्मिक महत्व बहुत गहरा है। इसे करने से व्यक्ति को जीवन में सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त होती है। इस व्रत के माध्यम से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और व्यक्ति के पापों का नाश होता है। इसके अलावा, इस व्रत का पालन करने से चातुर्मास की अवधि में भी व्यक्ति को संयम और अनुशासन का पालन करने की प्रेरणा मिलती है।

चातुर्मास का महत्व

देवशयनी एकादशी से शुरू होकर देवउठनी एकादशी (कार्तिक शुक्ल एकादशी) तक की अवधि को चातुर्मास कहा जाता है। इस अवधि में धार्मिक गतिविधियों, व्रतों और नियमों का पालन विशेष रूप से किया जाता है। यह समय आत्मशुद्धि, साधना और भगवान की भक्ति के लिए अत्यंत उपयुक्त माना जाता है।

निष्कर्ष

देवशयनी एकादशी का व्रत धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह व्यक्ति को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने का एक उत्कृष्ट माध्यम है। इस व्रत के माध्यम से न केवल पापों से मुक्ति मिलती है बल्कि जीवन में सुख-समृद्धि और शांति का वास भी होता है। अतः प्रत्येक हिंदू भक्त को इस पवित्र एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए।

Scroll to Top