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Mohini Ekadashi

मोहिनी एकादशी: महत्त्व, पूजन विधि और कथा

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मोहिनी एकादशी हिंदू पंचांग के अनुसार वैसाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु के मोहिनी स्वरूप की पूजा की जाती है। मोहिनी एकादशी का व्रत अति पुण्यकारी माना जाता है और इसे करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।

मोहिनी एकादशी का महत्त्व

मोहिनी एकादशी का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व अत्यंत महत्वपूर्ण है। कहा जाता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-शांति आती है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत सभी प्रकार के पापों से मुक्ति दिलाता है और जीवन में सकारात्मकता लाता है।

पूजन विधि

मोहिनी एकादशी की पूजन विधि में कुछ प्रमुख चरण होते हैं:

  1. स्नान और संकल्प: इस दिन प्रातः काल सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूजा के लिए एक शांत एवं स्वच्छ स्थान का चयन करें। पूजा स्थल पर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। संकल्प लें कि आप पूरे दिन व्रत रहेंगे और विधि-विधान से पूजा करेंगे।
  2. पूजा सामग्री का प्रबंध: पूजा के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है:
    • भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र
    • पीले फूल और तुलसी के पत्ते
    • धूप, दीपक और नैवेद्य (फलों का भोग)
    • पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर)
    • गंगाजल
  3. विष्णु पूजा: सबसे पहले भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र को गंगाजल से स्नान कराएं। उन्हें पीले वस्त्र अर्पित करें। फिर पीले फूल और तुलसी के पत्तों से भगवान विष्णु का पूजन करें। धूप और दीप जलाएं और नैवेद्य अर्पित करें।
  4. व्रत कथा का श्रवण: मोहिनी एकादशी की व्रत कथा का श्रवण करें या पाठ करें। व्रत कथा सुनने से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है।
  5. उपवास: इस दिन व्रतधारी को अन्न का सेवन नहीं करना चाहिए। फलाहार या केवल जल का सेवन कर सकते हैं। यदि स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हों तो दूध या फल का सेवन किया जा सकता है।
  6. आरती और मंत्र जाप: विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें और भगवान विष्णु की आरती करें। भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें, जैसे "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय"।
  7. दान-पुण्य: व्रत के दिन गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें दान-दक्षिणा दें। इससे व्रत का फल और भी अधिक शुभ हो जाता है।

मोहिनी एकादशी व्रत कथा

प्राचीन समय की बात है, सरस्वती नदी के किनारे भद्रावती नामक नगरी थी। वहां का राजा धृतिमान, धर्मात्मा और विष्णु भक्त था। उसी नगर में एक धनवान वैश्य धनपाल रहता था। वह बहुत ही धर्मात्मा और विष्णु भक्त था, उसने नगर में अनेक भोजनालय, प्याऊ, कुएँ, तालाब, धर्मशालायें आदि बनवाये, सड़को के किनारे आम, जामुन, नीम आदि के वृक्ष लगवाये, जिससे पथिकों को आराम मिले। धनपाल के पाँच पुत्र थे, जिनमें से सबसे छोटा पुत्र धृष्टबुद्धि बहुत पापी और कुसंगति में लिप्त था। वह सदैव गलत कार्यों में लिप्त रहता था। वह वेश्याओं और दुष्टों की संगति करता था। इससे जो समय बचता था, उसे वह जुआ खेलने में व्यतीत करता था। वह बड़ा ही अधम था तथा देवता, पितृ आदि किसी को भी नहीं मानता था। अपने पिता का अधिकांश धन वह बुरे व्यसनों में ही उड़ाया करता था। मद्यपान तथा माँसभक्षण करना उसका नित्य कर्म था। जब अत्यधिक समझाने-बुझाने पर भी वह सीधे रास्ते पर नहीं आया तो दुखी होकर उसके पिता, भाइयों तथा कुटुम्बियों ने उसे घर से निकाल दिया और उसकी निन्दा करने लगे। घर से निकलने के पश्चात वह अपने आभूषणों तथा वस्त्रों को बेच-बेचकर अपना जीवन-यापन करने लगा।

धृष्टबुद्धि ने अपने जीवन यापन के लिए चोरी और अन्य बुरे कार्य करने शुरू कर दिए। किन्तु एक दिन वह पकड़ा गया, परन्तु सिपाहियों ने वैश्य का पुत्र जानकर छोड़ दिया। जब वह दूसरी बार पुनः पकड़ा गया, तब सिपाहियों ने भी उसका कोई लिहाज नहीं किया तथा राजा के सामने प्रस्तुत करके उसे सारी बात बताई। तब राजा ने उसे कारागार में डलवा दिया। कारागार में राजा के आदेश से उसे नाना प्रकार के कष्ट दिये गये तथा अन्त में उसे नगर से निष्कासित करने का आदेश दिया गया। दुखी होकर उसे नगर छोड़ना पड़ा। 

इस प्रकार कई वर्षों तक कष्ट भोगने के बाद वह महर्षि कौंड़िन्य के आश्रम पहुंचा।  इन दिनों वैशाख का महीना था। कौण्डिन्य मुनि गङ्गा स्नान करके आये थे। उनके भीगे वस्त्रों की छींटें मात्र से इस पापी पर पड़ गयीं, जिसके फलस्वरूप उसे कुछ सद्बुद्धि प्राप्त हुयी। वह अधम, ऋषि के समीप पहुँचकर हाथ जोड़कर कहने लगा, "हे महात्मा! मैंने अपने जीवन में अनेक पाप किये हैं, कृपा कर आप उन पापों से छूटने का कोई साधारण तथा धन रहित उपाय बतलाइये।"

ऋषि ने कहा, "तू ध्यान देकर सुन, वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत कर। इस एकादशी का नाम मोहिनी है। इसका उपवास करने से तेरे सभी पाप नष्ट हो जायेंगे।"

ऋषि के वचनों को सुन वह बहुत प्रसन्न हुआ और उनकी बतलायी हुयी विधि के अनुसार उसने मोहिनी एकादशी का व्रत किया।

धृष्टबुद्धि ने महर्षि की सलाह मानी और पूरी श्रद्धा से मोहिनी एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से उसके सभी पाप समाप्त हो गए और उसे उत्तम गति प्राप्त हुई।

मोहिनी एकादशी के लाभ

  1. पापों का नाश: मोहिनी एकादशी व्रत करने से सभी पापों का नाश होता है।
  2. मोक्ष की प्राप्ति: इस व्रत के पालन से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  3. सुख-समृद्धि: इस व्रत से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
  4. कष्टों का निवारण: मोहिनी एकादशी व्रत करने से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं।
  5. स्वास्थ्य लाभ: इस व्रत से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।

निष्कर्ष

मोहिनी एकादशी का व्रत बहुत ही पुण्यकारी और लाभकारी है। इसे करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने के लिए इस व्रत को पूरी श्रद्धा और भक्ति से करना चाहिए।

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